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कृत्रिम ग्लेशियर बना कर इस इंजीनियर ने हल की लद्दाख में पानी की समस्या

  • Writer: STORYDESK
    STORYDESK
  • Apr 1, 2018
  • 4 min read

Updated: Apr 10, 2018

1960 में यूपी की राजधानी लखनऊ से इंजीनियरिंग करने वाले चेवांग जम्मू-कश्मीर सरकार के ग्रामीण विकास विभाग में 35 साल तक सिविल इंजीनियर के पद पर काम करते रहे। नौकरी करते वक्त वे लद्दाख क्षेत्र में सड़क, पुल, इमारत या सिंचाई प्रणाली बनाने में मदद करते रहे।


चेवांग से प्रेरणा लेकर लद्दाख के कई युवाओं ने वहां काम करना शुरू किया। प्रसिद्ध सोनम वांगचुक भी चेवांग के ही शिष्य हैं जिनके काम को आमिर खान की फिल्म 'थ्री इडियट्स' में दिखाया गया था।


लद्दाख के ठंडे पर्वतीय रेगिस्तान में जहां 80 फीसदी आबादी सिर्फ खेती से होने वाली आमदनी पर निर्भर है वहां पानी की सबसे गंभीर समस्या होती है। इस समस्या को दूर करने में जम्मू और कश्मीर के ग्रामीण विकास विभाग में काफी लंबे समय तक काम कर चुके 82 साल के चेवांग नोरफेल ने काफी अहम भूमिका निभाई है। आज उनकी बदौलत यहां के लोगों को पानी नसीब हो रहा है और उनकी जिंदगी इस वजह से आसान हो गई है। चेवांग पानी को बर्फ के रूप में संरक्षित करने पर काम करते हैं। इन्हें कृत्रिम ग्लेशियर के नाम से भी जाना जाता है। इससे किसानों की भी काफी मदद हो जाती है।


1960 में यूपी की राजधानी लखनऊ से इंजीनियरिंग करने वाले चेवांग जम्मू-कश्मीर सरकार के ग्रामीण विकास विभाग में 35 साल तक सिविल इंजीनियर के पद पर काम करते रहे। नौकरी करते वक्त वे लद्दाख क्षेत्र में सड़क, पुल, इमारत या सिंचाई प्रणाली बनाने में मदद करते रहे। 1986 में उन्होंने कृत्रिम ग्लेशियर का निर्माण करना शुरू किया। उनका मकसद लेह और लद्दाख के लोगों को आसानी से पानी की उपलब्धता को सुलभ कराना था। यहां के किसान अधिकतर बाजरे और गेहूं की खेती करते हैं। वे अपने काम में सफल रहे और उन्होंने लद्दाख में 17 ऐसे कृत्रिम ग्लेशियर बनाए जिससे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती थी।

इस काम के लिए उन्हें 'आइसमैन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाने लगा। इस काम के लिए उन्हें राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के तहत सहायता मिली। उन्हें सेना और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ से भी सहायता प्राप्त हुई। लेकिन 82 वर्षीय चेवांग का ये काम आसान बिलकुल नहीं था। शुरू में लोग उन्हें पागल कहते थे। क्योंकि किसी को नहीं लगता था कि लद्दाथ में पानी की आपूर्ति सही की जा सकती है। लेकिन लोगों की सोच उनके मकसद को नहीं रोक पाई। नोरफेल बताते हैं, 'लद्दाख ऐसी जगह है जहां आपको अत्यधिक ठंड मिलेगी और यहीं पर आपको धूप की तेज रोशनी भी मिलेगी।'


वह बताते हैं कि अप्रैल से मई के बीच यहां पर पानी की किल्लत होने लगती थी, क्योंकि ग्लैशियर जम जाते हैं और इससे नदी का प्रवाह थम जाता है। वहां के लोगों के लिए पानी का यही एकमात्र स्रोत है। जो बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से आता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के स्वरूप में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। यही वजह है कि सर्दियों के महीनों में पानी बर्बाद हो जाता है। इसलिए चेवांग ने सोचा कि अगर वे पानी को बर्फ के रूप में संरक्षित कर सकें, तो सिंचाई की अवधि में किसानों की काफी हद तक मदद की जा सकती है।

यह विचार पहली बार उनके दिमाग में तब आया, जब उन्होंने देखा कि एक नल से पानी टपक रहा था, जिसे जानबूझ कर खुला रखा गया था, ताकि सर्दियों में पानी के जमने से नल का पाइप फटे न। पर जब ठंड बढ़ी, तो पानी धीरे-धीरे जमीन से जुड़ते हुए एक बर्फ की तार के आकार में परिवर्तित हो गया। चेवांग के लिए यह दृश्य गर्मियों से पहले वसंत में किसानों को होने वाली पानी की किल्लत खत्म करने के लिए एक समाधान की तरह सामने आया और इसी को आधार बनाकर उन्होंने कृत्रिम ग्लेशियर बनाने का काम शुरू कर दिया।



चेवांग ने इस काम के लिए अपने संपूर्ण इंजीनियरिंग ज्ञान, अनुभव को जुनून के मिश्रण के साथ प्रयोग किया। उन्होंने अपना पहला प्रयोग फुत्से गांव में शुरू किया। इसके लिए सबसे पहले पानी की मुख्यधारा से जुड़ती हुई एक नहर बनाई, जो गांव से चार किलोमीटर दूर एक ऐसे इलाके से जुड़ती थी, जहां पानी इकट्ठा किया जा सकता था। फिर उस हिस्से को ऐसा आकार दिया, जहां सर्दियों में पानी जमाया जा सके। कृत्रिम ग्लेशियरों को बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य तकनीक यह थी कि, जितना संभव हो उतना पानी का वेग नियंत्रित किया जाए, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में धाराओं की ढाल एकदम खड़ी होती है। नतीजतन, मुख्य धाराओं में पानी आमतौर पर स्थिर नहीं होता है। इसलिए पानी को कई रास्तों में बांटने के लिए दीवारों का निर्माण करके उसके वेग को कम किया गया।


पूर्व राष्ट्पति प्रणब मुखर्जी द्वारा पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करते चेवांग


उनसे प्रेरणा लेकर लद्दाख के कई युवाओं ने वहां काम करना शुरू किया। प्रसिद्ध सोनम वांगचुक भी चेवांग के ही शिष्य हैं जिनके काम को आमिर खान की फिल्म 'थ्री इडियट्स' में दिखाया गया था। चेवांग को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 11,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर बसा लद्दाख हिमालय के वर्षा छाया क्षेत्र में स्थित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 10 सेंटीमीटर है, जो मुख्य रूप से बर्फ के रूप में होती हैं, लेकिन फिर भी 274,289 की आबादी बनाए रखने के लिए यह काफी है। लेकिन पर्यटकों के बढ़ते भार से यहां पानी की आपूर्ति में कमी आ जाती है। जिन्हें ग्लेशियरों द्वारा पूरा किया जा रहा है।


चेवांग के बनाए इन्हीं ग्लेशियरों से आज लद्दाख में पानी की आपूर्ति की जाती है और वे इसे गर्व का विषय मानते हैं। उन्होंने यहां के रहने वालों की जिंदगी बदल दी है। वह कहते हैं कि ऐसे काम से उन्हें काफी सुकून मिलता है। चेवांग 1994 में अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए थे। तब से वे ग्लेशियर बनाने में जुटे हुए हैं। अगर वे काम के सिलसिले में बाहर नहीं होते हैं तो अपने क्षेत्र के युवाओं को प्रेरित करते हैं और अपने घर में बैठकर मेडिटेशन करते हैं। उन्होंने अपने घर में एक बगीचा भी बना रखा है जहां वे नई-नई खोज करते रहते हैं। वह घर में खाना बनाने के लिए सब्जी अपने घर पर ही उगाते हैं।

 
 
 

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